Saturday, June 2, 2012

KHAMOSHI....



क्या खामोशियों के गूंज को,
कभी करीब से जाना है?
किसी खामोश चेहरे कि,
कभी ख़ुशी में झूमती,
तो कभी दुःख में पुकारती,
आवाज को पहचाना है?
हर वक़्त किसी चीखती भीड़ में,
कोई न कोई खामोश होता है,
भावनाओं के अथाह सागर में खोया हो,
कुछ ऐसा महसूस होता है.

ख़ामोशी,
किन्ही डबडबाती आँखों की,
कभी झिलमिलाते पलकों की,
कभी दुःख गलियारे में खोये,
कभी ख़ुशी-उम्मीद की बीज बोये,
सिले लबों की लाचारी में,
नजरों की प्रेम कटारी में,
चेहरे की बेबस भरी सिकन में,
अरमानों की पोटली भरे मन में,
दोस्तों की बीच की उमस मे,
प्रेमियों के दिल मे उमड़ते,
प्यार भरे कशमकश मे,
कभी सहनशक्ति की परीक्षा लेती,
कभी जीवन की अनमोल शिक्षा देती,
अमन-शांति की खोज मे,
कभी वीरता की ओज मे,
कुटिल मुस्कान के रूप मे,
कभी बहता पसीना सा धुप मे,
शोर करती टकराती लहरों के आगे,
चुपचाप खड़े किनारों की,
पतझड़ के जाने के बाद,
दबे पांव आते बहारों की,
हवाओं में झूमते फूलों की,
तो कभी राहों में बिछे शुलों की.


धडकनों मे दबे तमाम जज्बात,
आँखों मे छुपी हर एक बात,
किसी के लिए पवित्र एहसास,
कभी दूर तो कभी पास,
कितना कुछ कह जाती है,
पानी की तरह बस बह जाती है,
बिना कहे,बिना सुने,
सब कुछ तो बता पाती है,
सच पूछो तो हर खोये मन की,
आवाज है ख़ामोशी,
दिल मे छुपे हजारो हसरतों की,
अनोखी सी साज है ख़ामोशी.